2008 को आई वैश्विक मंदी की चर्चा एक बार फिर आर्थिक जगत में हो रही है। 15 सितंबर 2008 में जब लेहमैन ब्रदर्स बैंक डूबा था तो उसने दुनियाभर में भारी आर्थिक तबाही मचा दी थी। कई और बैंक उस वजह से डूब गए थे। बैंकों पर आए इस संकट का असर कारोबारी जगत पर पड़ा और आगे नौकरियों को इसने लील लिया। एक झटके में बेरोजगारों की संख्या बढ़ गई।
दुनिया को फिर से पटरी पर लौटने में वक्त लगा। लेकिन उसके बाद कोरोना ने आर्थिक संकट खड़ा किया। उस झटके से लोग अब तक उबर ही रहे हैं कि एक बार फिर से बैंकिंग क्षेत्र को लेकर दुनिया भर में बेचैनी महसूस की गई। निवेशक बढ़ती ब्याज दरों की चुभन को कई दिनों से महसूस कर रहे थे। और इस चुभन के बीच खबर आई कि अमेरिका में 9 मार्च को सिल्वरगेट कैपिटल कॉरपोरेशन बैंक डूबा और 10 मार्च को सिलिकॉन वैली बैंक यानी एसवीबी डूब गया। जानकार एसवीबी के डूबने को अमेरिका का 2008 के बाद का दूसरा बड़ा बैंकिंग संकट बता रहे हैं।
अमेरिका के 16वें स्थान पर आने वाले एसवीबी के पास दो महीने पहले तक 209 अरब डॉलर की संपत्ति थी। बैंक के पास 179 अरब डॉलर के डिपॉजिट्स थे। लेकिन बुधवार को बैंक ने 2.5 अरब डॉलर जुटाने की योजना सार्वजनिक की, तो लोगों को बैंक की वित्तीय स्थिति पर संदेह हुआ और उन्होंने अपने पैसे निकालने शुरू कर दिए।
गुरुवार से ही लोग बैंक से अपने पैसे निकालने में जुटे थे। इसके बाद शुक्रवार को अमेरिकी सरकार ने बैंक की कमान अपने हाथ में ले ली और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस को बैंक का रिसीवर बना दिया गया। दरअसल यह एसवीबी पर यह वित्तीय संकट फेडरल रिजर्व की ब्याज दर में वृद्धि के कारण आया। साल 2017 के आखिर तक बैंक के पास 44 अरब डॉलर का डिपॉजिट था।
साल 2021 के आखिर तक यह 189 अरब डॉलर तक पहुंच गया। जिस दर पर बैंक कर्ज देते हैं और जिस दर पर वे लोगों से पैसा लेते हैं, उसके बीच का अंतर ही बैंकों की कमाई होती है। सिलिकॉन वैली बैंक का डिपॉजिट इसके द्वारा दिये गए कर्ज की राशि से काफी अधिक हो गया था। ऐसे में एसवीबी ने ब्याज से पैसा कमाने के लिए बॉन्ड में पैसा लगाना शुरू किया। एसवीबी ने ग्राहकों की जमा राशि से अरबों डॉलर कीमत के बॉन्ड खरीदे थे। ये निवेश आम तौर पर सुरक्षित होते हैं, लेकिन ब्याज दर बढ़ने के कारण इन निवेशों का मूल्य गिर गया।
दरअसल दुनिया के कई केन्द्रीय बैंकों की तरह अमेरिका में भी फेडरल रिजर्व ने महंगाई का उच्च स्तर देखते हुए आक्रामक रूप से ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया। इससे कम ब्याज दर वाले दौर में जारी हुए बॉन्ड्स की कीमतें घटने लगीं। सिलिकॉन वैली बैंक की मुसीबत यहीं से शुरु हुई। एसवीबी को पूरा लिक्विड बॉन्ड पोर्टफोलियो कम कीमत में बेचना पड़ा। इससे बैंक को 1.8 अरब डॉलर का घाटा हुआ। निवेशकों को बैंक की नाजुक वित्तीय स्थिति का अंदाजा हुआ, तो वे शेयर बेचने लगे। इस तरह बैंक का शेयर 60 प्रतिशत तक टूट गया और आखिरकार बैंक बंद ही हो गया। अपने पैसे निकालने के लिए जमाकर्ताओं की भीड़ बैंक की इमारत में लग गई और किसी तरह हालात पर काबू पाया गया।
1983 में शुरू हुआ यह बैंक स्टार्टअप्स में निवेश करने वाला एक बड़ा बैंक था। खासकर तकनीकी क्षेत्र के स्टार्टअप्स के लिए यह वित्तीय सहायता का बड़ा स्रोत था। सिलिकॉन वैली बैंक ने 21 भारतीय स्टार्टअप्स में भी पैसा लगाया हुआ है। पिछले 5-7 वर्षों से यह बैंक काफी चर्चा में आया। अच्छे रिटर्न के चलते लोग इसमें अपना पैसा जमा कराते थे। लेकिन अब भारतीय बाजार में एसवीबी के बंद होने की घबराहट देखी जा सकती है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि एसवीबी के बंद होने पर स्टार्टअप कंपनियों को फंड नहीं आएगा, तो उन्हें भी कारोबार समेटने की नौबत आ जाएगी।
टेकक्रंच नाम की पत्रिका ने कहा है कि अमेरिका से 8000 किलोमीटर दूर भारत में स्टार्टअप कंपनियों पर इस का असर पड़ना तय है। दर्जनों भारतीय स्टार्टअप एसवीबी पर निर्भर थे। कुछ स्टार्टअप में तो एसवीबी उनका एकमात्र बैंकिंग भागीदार था, जिनका पैसा वहां फंस गया है। कुछ भारतीय कंपनियां सिलिकॉन वैली बैंक से अपने पैसे को समय पर ट्रांसफर नहीं कर सकीं क्योंकि उनके पास एक और अमेरिकी बैंकिंग खाता आसानी से उपलब्ध नहीं था।
ये तमाम विपरीत हालात आने वाले संकट की चेतावनी दे रहे हैं। भारत में रोजगार पहले से ही कम हो चुके हैं। सरकार रोजगार मुहैया नहीं करा रही, स्टैंड अप और स्टार्ट अप का मंत्र युवाओं में फूंक रही है कि नौकरी मांगने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनो। लेकिन नौकरियां भी तभी दी जा सकती हैं, जब लोगों को वेतन देने का इंतजाम हो। अक्सर बैंक ही इसमें मददगार साबित होते हैं। लेकिन भारतीय बैंकों की दशा पहले से खराब है। बैंकों के विलय और निजी क्षेत्रों को आगे बढ़ाने के फेर में सरकार ने हर तरह से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। अडानी प्रकरण के बाद से बाजार में पहले ही घबराहट है। लाखों छोटे निवेशक शेयर बाजार में अपनी पूंजी गंवा चुके हैं। ऐसे में अमेरिका में एक ऐसे बैंक का बंद होना, जो भारतीय कंपनियों के लिए भी सहारा था, एक बुरी घटना है। मुमकिन है दुनिया में इससे आर्थिक मंदी जैसे हालात न बने, लेकिन भारत में डगमगाती अर्थव्यवस्था के और लड़खड़ाने के आसार तो बन ही गए हैं।